करोड़ों रुपए खर्च करके फिल्म को घटिया से भी ज्यादा घटिया बनाया गया है। प्रभास बाहुबली में ठीक लगते थे लेकिन राम के चरित्र में वह बेहद घटिया लग रहे हैं। कहां मंद मंद मुस्कुराते सौम्य राम और कहां यह डेशिंग बाहुबली।
क्या हनुमान कभी ऐसा बोल सकते हैं कि तेरी भी जली क्या? फिल्म में जिस टपोरी भाषा का इस्तेमाल किया गया है जैसे लगता है कि यह सतयुग की कहानी नहीं है बल्कि मुंबई के टपोरियों की स्टोरी है। रावण शास्त्र और वेदों का महान ज्ञाता था उसे जिस तरीके से दिखाया गया है उसे हिंदू धर्म कतई बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। रावण में एक आतंकवादी की छवि दिखाई देती है। हिंदू धर्म इसे बर्दाश्त नहीं कर पाएगा।
फिल्म के डायलॉग लिखने वाले मनोज मुंतशिर अब शुक्ला तो लिखने लगे हैं, लेकिन उनके अक्ल अभी मौलाना वाली है। जैसे लग रहा है कि अनपढ़ों के तरीके से उन्होंने डायलॉग लिखे हैं।
आज के दौर में अगर बाल्मीकि और तुलसीदास होते तो इस फिल्म को देख कर के देश छोड़कर चले जाते। रामानंद सागर तो पक्का सुसाइड कर लेते।
इन्होंने ठीक से रामायण नहीं पढ़ी।
इसे फिल्म इतिहास की दुनिया की सबसे बड़ी बजट वाली फिल्म कहां जा रहा है। सैकड़ों करोड़ रुपए लगा देने भर से फिल्म अच्छी नहीं बनती है। जब आप हिंदू धर्म और सनातन को दिखा रहे हैं तो पैसा नहीं बल्कि आपका ज्ञान काम आता है।
और ज्ञान की दृष्टि से फिल्म बनाने वाले लोग एकदम छिछले दिखाई पड़ते हैं।
वैसे इस फिल्म को मैं 0 स्टार देना चाहता था लेकिन क्या करूं गूगल मैं 0 स्टार का ऑप्शन ही नहीं है।