आदिपुरुष मूवी मैंने देखी तो नहीं लेकिन जिस तरीके से ट्विटर ,फेसबुक पर मीम की बाढ़ सी आयी है इससे इतना तो पक्का हो गया है कि मूवी नहीं देखनी है.. बिना सोचे समझे लिखे डायलॉग और रामायण के असली पात्रों को चरितार्थ करते हुए नकली पात्रों का पहनावा , उस रामायण से दूर दूर तक मेल नहीं खाती जो हमारे मन मस्तिष्क में बचपन से समाया हुआ है...
बचपन की रामायण के लिए दीवानगी इस कदर हावी थी कि हमारे ही बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि जब रामायण सिरियल आता था तो लोग घर से दिया , फूल , अगरबत्ती लेकर जाते थे और सीरियल शुरू होते ही राम जी की जय के साथ देखने बैठते थे.. हर पात्र की एक संयमित भाषा थी, हर किरदार में अभिनेताओं ने ऐसी जान फूंकी जो लोगों के दिलों में आज भी जीवंत है... भारत में रामायण सिर्फ एक महाकाव्य नहीं प्राण वायु समान है, ऐसे में इस तरह की बिल्कुल विपरीत मूवी उसके आगे कहाँ टिक पायेगी...