हिन्दी लेखक व नाटककार मोहन राकेश, मन्नू भंडारी की कहानी 'यही सच है' के बारे में कहते हैं-
"प्रेम-त्रिकोण- एक स्त्री दो पुरुष, दो स्त्रियाँ एक पुरुष, एक स्त्री एक पुरुष और एक अदृश्य कुछ जो खलनायक की भूमिका में आ खड़ा होता है। यह एक ही तरह की कहानी न जाने कितनी बार और कितने हाथों से लिखी जा चुकी है और फिर भी इस विषय की नवीनता आज तक समाप्त नहीं हुई। हर बार जब एक नया व्यक्ति नयी तरह से जो उस त्रिकोण में से गुजरता है या पहले की तरह गुजरते हुए महसूस कुछ और तरह से करता है या महसूस भी नहीं कुछ करता है पर कहना किसी और ढंग से चाहता है तो फिर से वही कहानी एक नयी कहानी का रूप से लेती है।"