यह फिल्म अगर सपरिवार देख ली जाती है तो भी अपने आप में एक साहसिक प्रयास है क्योंकि ऐसा हो ही नहीं सकता कि यह हर इंसान को अपने सवालों में घेर न ले। मुल्क के बाद थप्पड़ के संवाद इतने सधे लिखे और कहे गए हैं कि फिल्म को देखना और ध्यान से सुनना भी बेहद जरूरी हो गया है। संवादों को सुनते वक़्त, हॉल में किसी के चिप्स पैकेट की खरखराहट भी चुभती है। अंततः यह उम्दा फिल्म हम सब के भीतर के मेंटल सिस्टम को पुरजोर तरीके से रीबूट करने की अपील करती है और यह अकेले एक से नहीं होगा... वी शुड नीड टू रीबूट टूगेदर।