जिन्होंने कहा है की ये एक पश्चिम की चाल है, उन्हें अपने धर्म शास्त्रों का सुक्ष्म अध्ययन कर लेना चाहिए. खासकर मनुस्मृति का अध्ययन तो कर ही लेना चाहिए. मिस मेयो ने ये पुस्तक भारत की यात्रा करने के बाद लिखी थी क्योंकि जो उन्होंने पाया उसकों उन्होंने शब्दों में पिरो दिया. ये ही नहीं 1987 के दोर में अंबेडकर की पुस्तक "हिंदू धर्म की पहेलियाँ" पुस्तक का भी इन्होंने इसी तरह विरोध किया था, क्योंकि उसमें इनके वेदों की आलोचना की गई थी. मेरा मानना है की "जिन्होंने इस पुस्तक को एक चाल के तोर पे लिया है उन्होंने भारत के इतिहास का अध्ययन नहीं किया है". इस कारण बरनी, बरुनी, बरबोसा, डॉ बर्नियर आदि इनकी पुस्तकों का ग़हन अध्ययन कर लेना चाहिए और साथ ही डॉ अंबेडकर की पुस्तक " हिंदुत्व का दर्शन " का भी अध्ययन कर लेना चाहिए.