रिंकी सी मुस्कान है उसकी, और मैं दफ़्तर सा पंचायत का,
वो उम्मीदों चमकती आंखों में, मैं लफ्ज़ उसकी शिकायत का,
वो हर लेती तकलीफें मेरी, मैं खेत में बिखरा धान सा,
ख्यालों में मैं चलता उसके, उसके ख्यालों में मैं परेशान सा,
हड़बड़ाती धड़कने उसकी, मुस्कान है उसकी शांत सी,
निगाहें उसके चेहरे पर, बस एक ये जगह एकांत सी,
राकेश सी परेशानियां उसकी, मैं बलिया का दरोगा सा,
तिनकों से डर जाती वो, मैं आंधी का झरोखा सा,
समझ जाती वो खामोशी मेरी, मैं नए गांव में अनजान सा,
आखिरी चुस्की चाय की उसकी, मेरे दफ़्तर में मैं मेहमान सा,
बातें उसकी सचिव सी उसकी, मैं रिंकी की रिवायत सा,
रिंकी सी मुस्कान है उसकी, और मैं दफ़्तर सा पंचायत का।