पटकथा--
बेजोड़
अभिनय--
प्रभावी, रोचक, ----"विस्फोटक",प्रचण्ड
कलाकार--
सनी देओल, जूही चावला, सौरभ शुक्ला, अन्नू कपूर, आशीष विद्यार्थी, मुकेश ऋषि, यशपाल शर्मा, साथ ही अन्य साथी कलाकार..।
गीत और गायक,---
1-घेर घार घाघरो- "जसपिंदर नरूला" ।
2-ओ प्रिया सुनो प्रिया- "अल्का याग्निक, कुमार सानू ।
3-कहाँ जाये कोइ- "प्रीती उत्तम सिंह, शंकर महादेवन ।
4-कुड़ियाँ शहेर दियाँ- "अल्का याग्निक, दलेर मेहन्दी ।
गीत और गीतकार,---
1-घेर घार घाघरो- "जावेद अख़्तर" ।
2-ओ प्रिया सुनो प्रिया- "जावेद अख़्तर" ।
3-कहाँ जाये कोइ- "जावेद अख़्तर" ।
4-कुड़ियाँ शहेर दियाँ- "जावेद अख़्तर" ।
गीत और संगीतकार,---
1-घेर घार घाघरो- "दिलीप सेन, समीर सेन" ।
2-ओ प्रिया सुनो प्रिया- "दिलीप सेन, समीर सेन"।
3-कहाँ जाये कोइ- "दिलीप सेन , समीर सेन"" ।
4-कुड़ियाँ शहेर दियाँ- "दलेर मेहन्दी, दिलीप सेन और समीर सेन" ।
निर्देशक,---
राहुल रवैल
कथानक संक्षिप्त परिचय,---
यह चलचित्र एक सीधे साधे सज्जन अध्यापक के एक खुंखार माफिया में तब्दील हो जाने की कहानी है.।
"आखिर क्यों"-?
कारण जानने के लिये आपको फ़िल्म देखना होगा.😊👍।
दो घण्टे बीस मिनट की इस फ़िल्म में आप ऐसे कई दृश्यों से गुजरेंगे जिसमें हकीकत की मात्रा फ़साने से कहीं जादा प्रतीत होगी.।
सारे कलाकारों का अभिनय लाजवाब तरीके से बेमिशाल है.।
गीत- संगीत कर्णप्रिय है.।
मनोरन्जन के लिहाज से भी ये फ़िल्म कई कई बार देखने लायक बन पड़ी है.।
अपने इस वार्तालाप के अंत मे आज के कलाकारों की कलाकारी पर बिना सवाल उठाये केवल इतना लिखना चाहूँगा कि अगर अब इस फ़िल्म का निर्माण फिर से भविष्य में कभी किया गया
तो मेरे अपने विचार से-
"इस फ़िल्म की 'अभिनय क्षमता की दमदारी' से न्याय कदापि नहीं हो पायेगा..।
🙏सधन्यवाद🙏
लेखक और समीक्षक
"अभिनव शुक्ला"
- उर्फ
-"अभ्भू भइया"