आजतक तक मैने जितने भी उपन्यास पढ़े और प्रेम के बारे में देखा और सुना उसमें सबसे अलग अनुभव इस किताब को पढ़ कर हुआ। आखिर में इस कहानी ने मेरे दिल एक दम से झंझोर के रख दिया। इसे पढ़ते हुए जैसे मुझे स्वयं "चंदर और सुधा" का दर्द महसूस हो रहा था और आखिर में सुधा के जाने के बाद चंदर की क्या दुर्दशा हुई होगी इसका मैं अनुमान भी नहीं लगा सकती कि उसे किस दर्द का सामना करना पड़ा और फिर भी उसने खुद को संभाला कैसे होगा?