शुक्रवार विशेष मे-
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||माँ आदिशक्ति को नमस्कार||
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व्यास उज्जैन से-✍
जो आठ भुजाओं वाली हैं, जिनके हाथों में अस्त्र-शस्त्र है, जिनके चेहरे पर अद्भुत तेज है, जो युद्ध में भीषण हुंकार करने वाली और सिंह पर आरूढ़, शत्रुओं का दमन करने में तत्परता से निरंतर अग्रसर होने वाली हैं और देवताओं की सभी प्रकार से रक्षा करने वाली हैं। मां दुर्गा के इस स्वरूप का जिसे देवताओं ने अनुभव किया, वह स्वरूप तो अपने आप में विलक्षण है, इनकी तेजस्विता से समस्त संसार प्रकाशित हो रहा है।
इनकी हुंकार से सारा विश्व चलायमान है, इनकी आवाज से सभी दैत्यों के हृदय कांपने लगे हैं, जो प्रहार करने में लाखों वज्र की तरह समर्थ हैं, साथ ही मातृस्वरूपा भी हैं, जो अपने भक्तों की रक्षा करने में सदैव तत्पर रहती हैं, साथ ही साथ ‘महाकाली’ बनकर शत्रुओं का संहार करने में समर्थ हैं, ‘महालक्ष्मी’ बनकर मनुष्यों को संपन्नता देने में समर्थ हैं, ‘महासरस्वती’ बनकर जो मनुष्यों को बुद्धि और चेतना देने में समर्थ हैं।
ऐसी दिव्यात्म स्वरूपा भगवती दुर्गा का देवता लोग
शत्-शत् वंदन करने लगे, देवताओं ने स्तुति में कहा-
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‘यच्च किंचित क्वचिद्वस्तु
सदसद्वाखिलात्मिके।
तस्य सर्वस्य या शक्ति:
सा त्वं कि स्तूयसे तदा।।’
अर्थात्- हे देवी! जगत् में सर्वत्र जड़-चेतन जो कुछ पदार्थ है, उन सबकी मूलशक्ति या प्राण आप ही हैं।इस संसार का कारण चिन्मयी, प्राण स्वरूपिणी, संसार व्यापिनी एक मात्र शक्ति ही हैं। इसी शक्ति को नमस्कार करते हैं-
|| जय हो माँ भगवती ||