आजकल के जमाने में कौन से ऐसे नवयुवक होंगे जो सादी,सच्ची साफ़-सुथरी फ़िल्म और वह भी जिसमें न कैबरे ,बलात्कार,पंजाबी बीट के कम-से कम चार गाने,डबल मीनिंग
के डायलॉग व गाने न हो,को पंसद करेंगे ।आज की फ़िल्मों में,ज़्यादातर , न तो शायरी और न ही कर्णप्रिय संगीत ही होता है ,सिर्फ़ धूमधड़ाम व शोर शरावा।इसके लिए केवल निर्माताओं,निर्देशक व संगीतकारों को ग़लत ठहराना ठीक नहीं है क्योंकि जो बिकता है वो ही बनता है।