फ़िल्म समीक्षा "जीरो"
अच्छा कमा रहे है तो "जीरो" देख आइए बाजारवाद का दौर है, और नहीं कमा रहे तो बता दूँ अंगूर खट्टे है फ़िल्म ने ऑडिएंस के साथ बमचिक बेमानी की है।
शाहरुख खान, कटरीना ,अनुष्का के इर्द गिर्द #पो शम्पा भाई पो शम्पा हो रहा है,या यू कहे कि बिना सिर पैर का प्रेम त्रिकोण घुमाया जा रहा है, जिसका कोई कोण नहीं है । स्क्रीनप्ले बहुत ही झंडू है और कहानी के स्ट्रक्चर से रेखागणित मिसिंग है।
भरोसा कीजिये फ़िल्म के आखिर में तो ऐसा लगा कि कही "जीरो" द्वितीय में लेखक हिमांशु शर्मा "इनटसटेलर" की कहानी तो नहीं लिखने वाले- जब शाहरुख कहते है कि "स्पेस में रह के आज भी वो जवान हैं और दुनिया 15 साल बूढ़ी हो गई हैं"।
लेखक हिमांशु शर्मा और निर्देशक आंनद एल राय इस फ़िल्म में भी काफ़ी हद तक "रांझणा" से ही अभिभूत नजर आए है, खासतौर पे एक्टर जीशान को लेकर जिनको सेम स्क्रिप्ट नए डायलॉग के साथ थमा दी गयी क्योंकि वह(जीशान) फ़िल्म में बिल्कुल वही काम करते नजर आए है ,जो "रांझणा" में कुंदन(धनुष) के चेला मित्र बन के कर रहे थे। कमाल की बात ये है कि गायब और प्रगट भी फ़िल्म में ऐसे होते है जैसे कोई उनके कान में आके बोल देता है कि "गुरु निकसो तुम्हारा काम हो गया"
कभी कभी तो लगता है आनंद एल राय की फिल्मों में प्रेमत्रिकोड़, अभय देओल और जीशान भाग्यशाली टोटके है।
आगे फिर से बोलूंगा पईसा है तो संगी या संगिनी के साथ देख आइए वर्ना ठंडी में चुप मार के पड़े रहिए टीवी पे जल्द ही आएगी फिर पकौड़ी चाय के साथ निपटा दीजिएगा।
अच्छा क्या है
वी एफ एक्स और संगीत से लैस फ़िल्म
शाहरुख का दिल्ली-मेरठ अंदाज और अदाकारी
तिग्मांशु धूलिया की गुंडई और जीशान के शाब्दिक पंच
कटरीना के लटके-झटके
यदा कदा अनुष्का का संजीदा अभिनय
जब तक सुबह शाम है गाने का शानदार फिल्मांकन