जब मैंने मन्नू जी को अपनी कोर्स की किताबों से इतर कही पढ़ा है । और यह अनुभव इतना सुखद रहा कि इस कहानी संग्रह से लगाव सा हो गया । मैंने सोचा भी था कि शुरूआत उनके किसी उपन्यास से नही, कहानियों से ही करूँगी और यह किताब मेरे हाथ लगी । इस किताब में कुल ग्यारह कहानियाँ हैं सभी उत्कृष्ट अधिकतर नारी के मनोविज्ञान और संवेदनाओं को बड़ी शिद्दत और सफलता से दर्शाती हुई । काल्पनिक बुनियाद पर नही, बल्कि यथार्थ की पक्की जमीं पर,मन्नू जी की कहानियों का यह संग्रह उनके समय को दर्शाता है एक समर्थ आईना ही है, जिसमें आप रूढ़ियों के लिए एक अलग स्थान पाएंगे और आधुनिकता के लिए अलग उनकी कहानियाँ जहाँ रूढ़ियों को दर्शाते हुए भी उनका बहिष्कार करने पर ही ज़ोर देती हैं, वहीं सभी घटनाक्रमों को एक सूत्र में बाँधकर आधुनिकता के लिए एक अलग राह तय करती हैं । इस संग्रह की कहानियों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे आपको बाँध देती हैं । आपने अगर एक को शुरू कर दिया है तो तय मानिए कि बिना ख़त्म किए आप उसे बीच में छोड़ नही पाएंगे । यहाँ तक कि उससे नजरें तक ना हटा पाएंगे । इन कहानियों की और भी बहुत सी खास बातें हैं, जिन्हें आप सिर्फ़ और सिर्फ़ पढ़ कर ही जान और समझ सकते हैं । अगर संक्षेप में कुछ कहना हो तो ‘सजा’ आपको रूला देगी, ‘दो कलाकार’ गर्वान्वित कर देगी, ‘चश्मे’ भावुक कर देगी और ‘यही सच है’ मुस्कराहट दे जाएगी । किताब बहुत ही अद्भुत है । बार बार पढ़ने योग्य है । अपने संग्रह में इसे पाकर मैं अत्यंत खुश हूँ और मन्नू जी की बाकी रचनाएँ पढ़ने को उत्सुक भी हूँ......#तनुश्री