इस फिल्म में 1990 में हुई कश्मीर हिंसा के साथ-साथ उस दौर की पीढ़ी और आज की पीढ़ी के बीच चल रहे संघर्ष को भी दिखाने की कोशिश की गई है, लेकिन यह फिल्म कितनी सच्चाई पर आधारित है और यह कितनी कल्पना है यह वही है जो लगभग 700 परिवार पीड़ितों ने हकीकत बयां किया है।