उन्हीं के सामने इंसाफ हुआ
मिल गया सबूत बेगुनाही का
मगर फैसला ख़िलाफ हुआ
उठी आवाज़ें चिल्ला चिल्लाकर
लेकिन दबा दी गई
पूछते रहे ख़ैरियत भी वही
जिनके हाथाें सज़ा दी गई
मुझसे मेरा दर्द न पूछाे मैं कश्मीरी पंडित हूँ
अपने घर में मारा गया टुकड़ो टुकड़ो में खंडित हूँ
बेदर्द हवाआें ने देखा घाटी में धाेखा खाया हूँ
खामाेश खड़ी थी दुनियां अपनाें की लाशें पाया हूँ
शाेर वक़्त में जिन्दा है चीत्काराें से मैं मंडित हूँ
मुझसे मेरा दर्द न पूछाे मैं कश्मीरी पंडित हूँ
याद है मुझको जुल्म पुराना चुप चाप खड़े थे लाेग
लुट रही थी अस्मत मेरी मरी थी माँ की काेख
हमें बचाने काेई न आया खुद के वतन में दंडित हूँ
मुझसे मेरा दर्द न पूछाे मैं कश्मीरी पंडित हूँ
सबने अकेला छाेड़ दिया मैं भी देश का हिस्सा हूँ
भटक रहा हूँ तन्हाई में नहीं भूला काई किस्सा हूँ
छिनी विरासत मेरी दिलाआे मैं धाेखे से अचंभित हूँ
मुझसे मेरा दर्द न पूछाे मैं कश्मीरी पंडित हूँ
अस्तित्व अगर पहचानाेगे तो दूर कुबुद्धि भागी है
हम संयम के पालक वरना हमसे क्या बाकी है
कर दाे मेरा सबकुछ संचय मैं ईश्वर में आनंदित हूँ
मुझसे मेरा दर्द न पूछाे मैं कश्मीरी पंडित हूँ