फिल्म ‘शमशेरा’ की कहानी उसी कालखंड की है जिस कालखंड पर एक कमजोर सी फिल्म यश राज फिल्म्स ने ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तां’ के नाम से बनाई थी। उस फिल्म के बाद से आमिर खान की अब तक कोई नई फिल्म नहीं आई है और अमिताभ बच्चन का बॉक्स ऑफिस पर कितना आकर्षण बचा है, ये बात ‘चेहरे’, ‘झुंड’ और ‘रनवे 34’ जैसी फिल्मों के नतीजों से समझी जा सकती है। खोखले शोध के आधार पर रची ऊपर से रंगी पुती दिखने इन कहानियों की दुनिया दरअसल बहुत नकली होती है। रणबीर कपूर की बड़े परदे पर चार साल बाद वापसी की फिल्म ‘शमशेरा’ की भी यही सबसे बड़ी खामी है। यहां तो पूरी फिल्म बस दो ठिकानों में ही इसके निर्देशक ने निपटा दी है। पता ही नहीं चलता कि तब दुनिया में और कुछ भी होता था कि नहीं। यश राज फिल्म्स के लिए उसका स्वर्ण जयंती साल ठीक नहीं रहा है और इस साल की कंपनी की आखिरी रिलीज फिल्म ‘शमशेरा’ का भी बॉक्स ऑफिस पर सफर कठिन दिख रहा है। फिल्म को सोचने और बनाने में यहां बस उतना ही फर्क है जितना कि ओपनिंग क्रेडिट्स में फिल्म की लेखिका खिला बिष्ट का नाम हिंदी में खिला ‘बीस्ट’ लिखने में।