डायरेक्टर ओम राउत को अपनी कास्ट के साथ हजारो साल की परंपरा को प्रदूषित करने के दोष में डूब मरना चाहिए।फ़िल्म को नाम -राम मीले न मिले उन्हें जरूर रामकृपा मिल जाये!!!
बाजारू डाइलॉग !राम और हनुमान की इतनी पिटाई कभी नही देखी।
ढंग का एक गाना नही। निहायत घटिया कॉस्ट्यूम।
राम को चमड़े का कपड़ा पहना दिया।कास्ट की महीनों बालो की कटाई नही।
रावण की सोने की लंका काजल की काली काली कोठरीसी दिखरही।। पुष्पक विग्यान चमगादड़ में बदलने का रचनात्मक दुस्साहस के लिए क्या कहा जाए।
मनोज मुन्तशिर ने अपना नाम खराब किया।
जिस पीढ़ी नेकभी रामायण देखी न पड़ी उनका दिमाग हमेशा के लिए खराब करने का अपराध बहुत बड़ा है।
बाकी विसुवल, सिनेमेटोग्राफी, और सैफ अली खान की अदाकारी के लिए प्रशंशा जरूर की जानी चाहिए।राम सबको सद्बुद्धि दे।वैसे बता दे कि पुरी फील्म में राम का नाम कही नही है!