'दिल धड़कने दो' मूवी काफी हद तक आज की सच्चाई बयां करती है। जहां दिखाने को तो परिवार साथ है। किन्तु आपस में वो किसी से कोई बात नहीं करते। जहां सब कुछ देखने दिखने पर आधारित है। जहां परिवार साथ होकर भी साथ नहीं है। वो बस औपचारिकता को पूरा करने की कोशिश में है।