" नीम का पेड़ "
ए बुधई, जी मालिक , उ का है कि , नखलऊ जाए का है !!
काश कि ज़िन्दगी में कोई रास्ता पीछे की ओर भी जाता और मैं फिर से बच्चा बन जाता। स्कूल जाता , मैदान में खेलता , बेर की डाल पर पत्थर चलाता , टूशन मास्टर से नज़रें चुराता।...समय हमेशा आगे की ओर ही क्यों चलता है पीछे कि ओर क्यों नहीं ? ये पढ़े लिखे लोगों की मॉडर्न दुनियां तो बड़ी शातिर और चालबाज़ निकली ! मुझे फिर से जाना है बुधई के पास, जिसके पास थी साधारण बातें और साधारण लिबास। जाने कितने बरस हो गए ठहाके लगाकर हंसे, जाने कितने बरस हो गए खुद को जिए...इस मौजूदा दौर में इंसान स्वयं से ही दूर हो गया है !! क्या सच में हमने तरक्की की ? कितना आसान होता है वर्तमान और भविष्य को खरीद लेना पर किसी दुकान पर अतीत बिकता हुआ दिखाई दे तो मैं अपनी सारी कमाई देकर उसे खरीद लूँ।