महाभारत के युद्ध की अंतिम संध्या के समय सुनसान पड़ी कौरव नगरी ,युद्ध से लौटती हुई हारी हुई कौरव सेना, तथा युयुत्सु की मनोदशा का मार्मिक वर्णन हुआ है। कवि कहना चाहता है कि युद्ध में चाहे कोई हारे या जीते दोनों पक्षों को ही विनाश का सामना करना पड़ता है तथा मर्यादाओं का खण्डन इंसान को ले डूबता है।अंत में प्रभु की मृत्यु को वर्णित करने से पहले के काव्यांश अत्यंत सुंदर हैं। कुल मिलाकर यह काव्य कृति अच्छी कहीं जा सकती है।