#KashmirFiles एक ज़रूरी फिल्म है। अगर हवा में कहानी है, तो कोई न कोई कहेगा ही। ये कहानी भी कही गई। बस, कुछ बातें समझ नहीं आईं। पहली, तब की राजनीति के बारे में क्यों नहीं बताया गया? फिल्म के मुताबिक़ राज्य का एक बड़ा अधिकारी बार-बार दिल्ली फ़ोन करता है। कोई नहीं सुनता. दो-चार मिनट लगाकर फिल्म को बताना चाहिए था कि कौन थे तब दिल्ली में। किसके हाथ में शासन था। कौन समर्थन दे रहा था। दूसरी बात, कश्मीरी पंडितों की कहानी बाहर नहीं आई इसके लिए फिल्म मीडिया को, पत्रकारों को दोष देती है. आस्तीन के साँप’, ‘आतंकियों के रखैल और ‘जनता सड़क पर पटक-पटक कर मारेगी’ जैसी बातें पत्रकारों के लिए कही गई हैं। लेकिन फिल्म के आख़िर में, हीरो को तब क्या हुआ था बताने के लिए जो फाइल दी गई उसमें कश्मीरी पंडितों के साथ जो हुआ वो समझाने के लिए अख़बारों की कटिंग्स की एक फाइल दी गई। अब अगर मीडिया ने कवर ही नहीं किया। छुपाया और लिखा ही नहीं तो ये कटिंग्स आई कहां से? तीसरी बात, फिल्म में जो दिखाया गया वो मंजर बहुत भयानक था। लेकिन फिल्म शुरू में कहती है कि वो किसी ऐतिहासिक घटना के सही होने का दावा नहीं करती। क्यों? जब पूरी फिल्म ही एक बहुत महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना पर बनी है। जिसमें इतनी मेहनत लगी है। जिसे देखकर करोड़ों लोग एक इतिहास को समझेंगे, उसको बनाते समय इस कमी को क्यों नहीं दूर किया गया। ये कोई सौ-दो सौ पुरानी घटना तो है नहीं।
@sushil