य़ह किताब मुझे बहुत पसंद आई चूंकि य़ह आज के समय मे भी प्रासंगिक है य़ह धर्म की आड़ में धंधे को जोड़ने का पर्दाफाश करती है य़ह व्यंग्य समाज की विसंगतियों का चित्र पेश करती है य़ह एक उपभोक्ता वादी समाज का आईना है इसमे अभिव्यक्त व्यंग्य पाठक को सोचने पर मजबूर कर देता है।