इतनी रात तक जगा हुआ हूँ। आनन्द देख रहा था। एक्चुअली, कल सुबह से ही काफी तनाव व निराशा से गुज़रा हूँ। कुछ अच्छा नही लग रहा था।
आनंद मेरी आल टाइम पसंदीदा फ़िल्म है। जब भी कुछ अच्छा नही लगता है, क्या मन मे कोई नकारात्मक विचार आता है। तो यह फ़िल्म मुझे ऊर्जा प्रदान करती है। आनंद उन गिनीचुनी फ़िल्मों में से एक है जो आज 48 साल बाद भी दिल को छू जाती है। फ़िल्म में किया गया प्रयोग है। जिसमे कि किस तरह से एक मरता हुआ आदमी प्यार और मज़ाक से पूरी दुनिया को खुशियाँ बाँट सकता है और सब का दिल जीत सकता है।
फिल्म का क्लाइमेक्स लाजवाब है, जहाँ आनंद(राजेश खन्ना) की साँसे थम चुकी हैं और हमेशा उसे कम बोलने की नसीहत देने वाला डॉक्टर भास्कर रो-रोकर उससे बोलने को कहते हैं। तभी आनंद की आवाज कानों में पड़ती है #बाबूमोशाय अमिताभ बच्चन चौंककर सिर उठाते है।
वह टेप बज रहा है, जिसमें उसने आनंद की आवाज रिकॉर्ड की थी। बाबू मोशाय, जिंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ है जहाँपनाह, जिसे न आप बदल सकते हैं, न मैं। हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं, जिनकी डोर उस ऊपर वाले के हाथों में है। कब, कौन, कैसे उठेगा, यह कोई नहीं जानता।' फिल्म इस संदेश के साथ खत्म होती है कि 'आनंद मरा नहीं। आनंद मरते नहीं। आनंद मरा नही करते हैं।
Harshit Raj Nirmal