वास्तविक प्रेम की अनुभूति ऐसा नहीं है कि प्रेम हमेशा से शरीर के आलंबन पर रहा है इसमें तो आत्मिक पवन प्रेम का चित्रण किया गया है सुधा की शादी होने पर भी वह उसकी नहीं हो पाती चन्दर की रहती है सदैव जैसे उपासक अपने देवता से प्रेम करता है सदा उसका रहता है आत्मिक बंधन से