महाराजा सूरजमल जाट का फ़िल्म में चित्रण उनके वास्तविक व्यक्तित्व से मेल नहीं खाता है।फ़िल्म का निर्देशन बहुत हल्का है।एक भी सीन प्रभावित नहीं करता और याद रखने लायक नहीं है।बिना रिसर्च और इतिहास पढ़े फ़िल्म बना दी गई है।सदाशिव राव भाऊ जैसे यौद्धा को मध्यांतर तक केवल इश्क करते हुए ही दिखाया गया है।संजय दत्त को देख कर वितृष्णा ही होती है।फौज और लड़ाई के दृश्यों को देख कर ऐसा लगता है जैसे फ़िल्म नही वरन टीवी सीरियल बनाया गया है। कुल मिला कर इतिहास का ज्ञान रखने वाले दर्शकों को निराशा ही हाथ लगी है।