पेज नंबर 32 तक ही खुल रहा है, आगे की पूरी कहानी पढ़ना चाह रहा था लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है।
लेकिन जितना भी पढ़ा, उतना ही और पढ़ने का में कर रहा था। प्राउड फील कर रहा हूं एक अदम्य इच्छाशक्ति वाले महानायक के बारे में जानकर।
लेकिन आज भी मुझे ऐसा लग रहा है कि पूरे भारत में जरूरतमंद गरीब बच्चों को उनकी जानकारी नहीं है।
आनंद सर आज भी एक ऐसे समाज से लड़ रहे हैं जो केवल दिखावे की
शानो शौकत भारी जिंदगी जीने का उदाहरण सेट करती है और जो बहुत ज्यादा ही मतलबी हो चुकी है।
आनंद सर से विनती है कि कुछ ऐसा करें कि उनके जाने के हजारों साल बाद तक भी यह संस्था बंद ना हो।
जैसे गौतम बुद्ध जब तक थे तब तक बुद्ध धर्म का प्रचार प्रसार तो होता रहा, लेकिन उनके ना रहने पर भारत में ही यह धर्म विलुप्त होता गया जो इसका जन्मदाता देश रहा हो।
कहीं आनंद सर के साथ भी ऐसा ना हो जाए।