कल पहली बार भूलन द मेज़ पूरी देखी (मनोज भैया से करबद्ध क्षमा याचना के साथ)......
कहानी का प्रारंभिक प्रारूप मनोज भैया ने मारवाड़ी श्मशान में मुलाक़ात के दौरान सुनाया था. मनोज भैया के चेहरे की चमक से ऐसा लग रहा था जैसे कोई मणि हाथ लग गई हो.
और ठीक वैसा ही हुआ. स्क्रिप्ट, कास्ट, डायरेक्शन, लोकेशन, गीत-संगीत, सभी बेहतरीन रहे.
राष्ट्रीय पुरस्कार लायक कोई फ़िल्म यदि बनी तो " भूलन द मेज़ ".
पुरस्कार तो मिलना ही था.
पूरी टीम को अनन्त बधाइयाँ
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