तात्या, स्वातंत्र्य विर विनायक दामोदर सावरकर खुद के लिये, अपने परिवार के लिये, अपने ब्राह्मण समाज के लिये कभी नही लढे! लढे मात्र मातृभू के गले की गुलामी की जंजिर उखाड फेकणे के लिये, जिन्होने गुलामी की जंजिर डाली उन्हे सजा देने के लिये! अपना पुरा जीवन राष्ट्र को समर्पित किया! कुछ मिलने के लिये नही मातृभू स्वतंत्र होने के लिये!
फिल्म से यह बात अधोरेखांकित की गई है! तात्या, स्वातंत्र्य विर विनायक दामोदर सावरकर जी की यही समर्पित भाव की छाप इस फिल्म के सर्वेसर्वा मा. श्री. रणदिपजी हुडा में दिखी! जब राष्ट्रभक्ती संचारती है तो तात्या, स्वातंत्र्य विर विनायक दामोदर सावरकर की छाप व्यक्ती के रग रग में भिन जाती है, ये जिता जागता उदाहरण है! ऐसे कई राष्ट्रभक्तीवाले भारत में संचार कर रहे है, भारत विरोधीयों को ये एक चेतावनी है, सुधर जाओ! वंदे मातरम! भारतमाता की जय!