कल लाल सिंह का ट्रेलर देखा और कम से कम ट्रेलर से तो कहीं भी नहीं लगा कि ये मिस्टर परफेक्शनिस्ट की फिल्म है। हम हॉलीवुड फिल्मों का रीमेक तो बना लेते है लेकिन वैसा फिल्मांकन, वैसा सेट, वैसा इमोशन, वैसा ड्रामा दिखाने में फिसड्डी साबित होते है। इस मामले में साउथ फिल्म इंडस्ट्री बहुत सशक्त है, बॉलीवुड से सैंकड़ों गुना बेहतर है। उनके पास अपनी कहानी होती है, अपनी लोकेशन होती है और सब कुछ परफेक्ट..
पिछले कुछ वर्षों में बॉलीवुड की कहानियों का स्तर बहुत गिर गया है। हिन्दी मेरी सबसे प्रिय भाषा है, लेकिन आजकल हिन्दी फिल्में ही बहुत उबाऊ लगने लगी है, क्योंकि बॉलीवुड फिल्मों में मौलिकता नाम का कुछ नहीं है।
मीडिया वाले फिल्म को अवश्य 4 या 5 स्टार देंगे क्यों कि उन्हें विज्ञापन और प्रमोशन के पैसे मिलते है, आप अपने विवेक से फिल्म देखने जाए, मनोरंजन के नाम पर आपको कूड़ा देखना है तो अवश्य अपने पैसे लुटाइए, पर मैं ऐसा नहीं कर सकता। लाल सिंह जैसी बॉलीवुड की फिल्मों पर पैसे खर्च करना बेकार है।