दरअसल समकालीन हिन्दी सिनेमा में एक भरोसेमंद मिथक है यदि फिल्म मेगास्टारर है ऊपर से बड़े बजट की है तो कुछ 'रसिक भारतीय' (जो फैन की आभूषणयुक्त संज्ञा से विभूषित किये जाते है) इस बिना नमक के लज़ीज़ भोजन को बिना कू का किये एक ही हिम्मतवाले दम के साथ निगलने का साहस रखते है। और कुछ जो नमक की आस में रहते है वो बिना नमक के भोजन को दूर से प्रणाम कर देते है।
कुछ एक दो तीन बिना नमक के भोजन बनाने में महारथी इस प्रकार का भोजन बनाने में अपना शौर्य और पराक्रम का प्रदर्शन समझते है। भइ इन महारथियो की भी गलती नही है क्योंकि ये जो कुछ 'रसिक भारतीय' खासतौर पर 'महानगरीय रसिक' जो सिर्फ अपना 'स्टेट्स सिम्बल' दिखाने के लिये बिना नमक का भोजन खा जाते है और फिर भोजन वितरण शाला (सिनेमा हॉल) के बाहर चिंहाड़ चिंहाड के मीडियावालों को लजीज़ लजीज़ भोजन कहते है ना ये 'औरंगजेब' महारथियों को ऐसी बिना जड़ और शीर्ष की फिल्मे बनाने के लिये प्रेरित करते है।
कुल मिलाकर काश ये महारथी अच्छा कन्टेन्ट लाकर अपने टैलेंट के साथ न्याय कर पाते।।