मुसलमानो का पक्ष रखनेवाली एक फ़िल्म जिसमे एक आतंकवादी को हिन्दू भाभी तो स्वीकार है पर हिन्दू नही,एक मुस्लिम पुलिस अधिकारी को आतंकवादी के पिता को जेल में रखने ,और आतंकवादी को गोली मारने के लिए शर्मिंदा किआ जाता है,हिंदुओं को लत बताया जाता है जब वे आतंकवादी के परिवार दे दूरी बनाने की कोशिश करते हैं।मुस्लिमबपित जिहाद का मतलब अपनी हिन्दू बहु को तो सही बताते है पर अपने बेटे भी के बेटे को समझ नही पाते,हिन्दू वकील से जान बूझ कर ऐसे डायलॉग बुलवाये गए है जो हिंदुओं की प्रिजुडिस मुसलमानों के लिए दिखाते हैं और अंत मे जज साहब फैसला देते समय हिंदुओं को ज्यादा समझते है मुसलमानों को कम।
और अंत मे हिंदुओं को सीख मिलते है कि वे गलत हैं।