समय की बर्बादी.
न जाने क्या सोच कर मनोज वाजपेयी जैसे कुशल अभिनेता ने इस फिल्म के पीछे अपना समय और अभिनय क्षमता बर्बाद की। उनके अलावा अन्य किरदार अदाकारी का कुछ खास जलवा दिखा नहीं पाए। फ़िल्म निर्माता इस बात को नकार रहे हैं कि यह किसी गुरु के जीवन पर आधारित है, लेकिन फिल्म समीक्षकों का कहना है कि यह एक धार्मिक व्यक्ति से जुड़े एक विशेष मामले के बारे में है। आलोचकों को इस प्रकार की राय देने के लिए बाध्य क्यों होना पडा? कुछ तो कारण होगा! वकिल पी.सी.सोलंकी, जिसे इस फिल्म में हिरो बनाकर पेश किया गया है, वे स्वयं इस फिल्म से नाखुश है तब हमारे इससे संतुष्ट होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता! पी.सी. सोलंकी ने कानूनी कार्रवाई करते हुए, फिल्म निर्माता को नोटिस भेजा है। फिल्म मेकर ने इस फिल्म को सच्चाई की जांच किए बिना बनाया है, इसलिए यह झूठ पर आधारित है न कि वास्तविकता पर।