लाल किल्ला हो या ताजमहल
कोई राजा ने नही हमीने बनवाया है
तुम्हारे सपनो को पुरा करनें में
हमने अपना पसीना बहाया है
इसके बावजूद भी बदहाली का
ये मंज़र है
ना खाने को घरपर आनाज
ना रहनें को घर है
अब क़ोई करे ना करे
हमे अपने मुक्कदर का फैसला
खुद करना होगा
इन मतलबी शहरो को छोडकर
फीर अपने गाँव लौटना होगा
भुके नंगे पैर कोसो पैदल चलना
हमारा शौक नही मजबुरी है
देश हीत में अपने घर लौटना
भी ज़रूरी है
यहाँ रहकर करोना से तो पता नही
लेकीन भूख से जरूर मर जायेंगे
जिंदा रहेंगे तो देश को आत्मनिर्भर बनाने फिर लौट आएंगे