बिहार के ग्रामीण अंचल की पृष्ठभूमि में गाड़ीवान और उसकी बैलगाड़ी की महिला सवारी के बीच रोचक संवादों से परिपूर्ण एक मार्मिक गाथा।
व्यवसायिक सफलता से वंचित पर साहित्य को सिनेमा में यथार्थ पर कलात्मक अभिरुचि के साथ अंकित करनेवाली अनमोल धरोहर।
गीत संगीत में ग्रामीण परिवेश के साथ सा आध्यात्मिक और दार्शनिक पुट भी है।
फणीश्वरनाथ रेणु हिंदी के पहले आंचलिक कथाकार और उपन्यासकार हैं।शैलेंद्र सामाजिक सरोकारों को गीतों में गागर में सागर की तरह भरनेवाले गीतकार।
दोनों का इस चलचित्र में मणिकांचन योग है।
राजकपूर और वहीदा रहमान का अभिनय अद्वितीय है।रेणु जी इस फिल्म के सिलसिले में मुंबई आये थे और इसका भी उन्होंने एक निबंध में जिक्र किया है।वह भी पठनीय है।साहित्य और सिनेमा के रसिकों को एक बार ये फिल्म अवश्य देखनी चाहिए।
आनन्द मोहन, मुम्बई/पटना