Silence... Can You Hear It?
जो कलाकार आपका पसंदीदा होता है उसका आर्टवर्क देखना आपके लिए एक रिलीजियस ड्यूटी हो जाती है। इस बाध्यता के चलते 'Silence... Can You Hear It?' Zee5 पर देखी। हर सीन के पूरा होने पर और डायलॉग के अदा होने पर हर बार ज़हन में यही आया कि बाजपेई साहब आपने यह मूवी क्यों की। मान लिया कोरोना के चलते मजबूरी है। लेकिन कुछ तो सब्सटेंस होना चाहिए मैटीरियल में।
ख़ैर आपको देखना एक रिलीजियस ड्यूटी ठहरी। आपसे ताल्लुक़ 1998-1999 से है तो निभाएंगे ही।
मुझे इस मूवी Silence... Can You Hear It? जिसका नाम Silence... Can You Bear It? होना चाहिए, को एक दर्शक को झेलने के पीछे डायरेक्टर और राइटर का एक ही शख़्स होना समझ आता है। दरअस्ल कहानी का झोल निर्देशन नहीं निकाल पाया और निर्देशक पात्रों से क्राइम पेट्रोल से ऊपर स्तर की अदाकारी नहीं करा पाया। अफ़सोस तो बाजपेई साहब भी बहुत हुआ जिन्होंने पात्र के ऊपर अपने स्टारडम को लाद लिया। 26 साल मुझे भी थानेदारी करते हुए हो गए। मर्डर की ऐसी तफ़्तीश मैंने नहीं देखी।
प्राची जैसी अच्छी बच्ची का रोल सिर्फ़ आख़िर में मुख्य मुल्ज़िमा को क़ाबू करने के इलावा मेरे पल्ले नहीं पड़ा। शायद हिंदी मूवी में लेडी पुलिस का अलग ग्लेमर माना जाता है अतएव। बस फ़िल्म में अच्छी बात यह लगी कि एक एसीपी साहब का अपने मातहत हवलदार रैंक से आप जनाब से संबोधन करना।
बाक़ी जो अभी तक इस साइलेन्स को हियर न कर पाए हों उनको उनके क़ीमती 136 मिनट्स बर्बाद करने की राय मैं क़तई नहीं दूंगा।