मैने " रेत समाधि" उपन्यास का एक एक पेज पढा है। निहायत बोरिंग और थकावट उत्पन्न करने वाला उपन्यास है यह। पठनीयता उपन्यास का अनिवार्य गुण है जो कि इस उपन्यास में है ही नहीं। मैं इसकी तुलना लुगदी साहित्य या palp literature से नही कर रहा हूँ। सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यासों में पठनीयता है लेकिन उसमें साहित्यिकता नहीें है।
"रेत समाधि" मेें कथानक का अता पता नहीं है। संवाद योजना भी कमजोर है।मैंने हजार से अधिक उपन्यासों को पढ़ा है लेकिन ऐसा बोरिंग उपन्यास पढ़ने का सौभाग्य मुझे कभी नहीं मिला।
मैं भी उपन्यासकार हूँ और मेरा उपन्यास "ताजमहल के आंसू " हर दृष्टि से "रेत समाधि" से बेहतर है। पढ़कर देखिए। यदि नहीं पसन्द आया तो मैं उपन्यास लिखना छोड़ दूँगा।