"अरे आओ ना तुम्बाड़ भोगना है तुम्हे रे"
सिनेमा के सभी विभागों- निर्देशन, पटकथा, छायांकन, अभिनय, इत्यादि पर खरी उतरती है 'हस्तर" के सोने जितनी,सेट एवं पोशाकों की भव्यता मोहित एवं निस्तब्ध करती है, हिंदी सिनेमा के अपने अनुभवों में मनुष्य स्वभाव की जटिलताओं की सतह के अंदर जाने वाले दुर्लभ प्रयासों में एक सराहनीय एवं अविस्मरणीय छाप।
सोहम शाह का अपने पात्र विनायक राव, एक तरह से कहानी के मुख्य किरदार जिनकी दृष्टि से आप "तुम्बाड़" 'जीते' और 'भोगते' है के रूप में उत्कृष्ट अदाकारी का प्रदर्शन, लघु पर अमिट स्मृति छोड़ती है ज्योति मलशे, विनायक की माँ के पात्र, दीपक डामले राघव के रूप में एवं अपार संभावनाएं लिए मोहम्मद समद पांडुरंग(विनायक का पुत्र) के तौर पर।