#Omertà में Rajkummar Rao को आतंकवादी उमर शेख के रूप में देख कर लगता है कि अभिनय में अभी उनका सर्वश्रेष्ठ आना बाकी है।
अफसोस कि मैं इतना लेट कैसे हो गया, ये फ़िल्म देखने में। फ़िल्म 'बहन होगी तेरी, शादी में जरूर आना और स्त्री में निभाए उनके किरदारों से हमें जितना ज्यादा प्यार होता है, ओमर्ता में उनके किरदार से उतनी ही नफरत होती है... और यही उनके अभिनय की कामयाबी है।
खामोशी, आंखों की भाषा और कुटिल मुस्कान.... काफी कुछ कह जाती है। कैरेक्टर के साथ पूरा इंसाफ किया है उन्होंने।
शाहिद के लिए बेस्ट निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुके हंसल मेहता ने शानदार स्क्रीनप्ले लिखा है। इतना कसा हुआ स्क्रीनप्ले कि आप पूरे पौने दो घंटे तक हिलना नहीं चाहते स्क्रीन से।
बैकग्राउंड स्कोर इतना लाजवाब है कि कई जगह डायलॉग से ज्यादा प्रभाव छोड़ते हैं। रियल फुटेज के इस्तेमाल औऱ रियल लोकेशन पे शूट किये जाने के कारण यह फ़िल्म डॉक्यू-ड्रामा लगती है।
डेनियल पर्ल की निर्मम हत्या... आतंकी ट्रेनिंग... जेल वाला हिस्सा... बल्कि पूरी फिल्म में ही सिनेमेटोग्राफी कमाल की है।
शाहिद के बाद हंसल और राजकुमार की जोड़ी ने एक बार फिर से कमाल कर दिया है।