आमिर खान को बॉलीवुड में एक मौलिक सोच का अभिनेता माना जाता रहा है और जब साथ शहंशाह हो तो उम्मीदें बढ़ जाती है । इस फ़िल्म में सब कुछ उधार का है , गानों को छोड़ कर । फ़िल्म का सारा केंद्र महान अभिनेताओं के लीगेसी को बनाये रखने पर सिमट गया है । कहानी में कोई रोमांचक मोड़ नही , एक्शन में कुछ नया नही , कॉमेडी जबरन थोपा हुआ और गाने सिर्फ लेंथ बढ़ाने के लिए जैसे ठूंस दिए गए हों ।
फ़िल्म का नाम भी भ्रमित करने वाला है । जिन्हें अलग अलग जोनर की फिल्में देखने का शौक है उनके लिए इस फ़िल्म के कई सारे दृश्य पुराने - नए हिंदी और अंग्रेजी फिल्मो के प्रभाव में बनी खिचड़ी ही है ।