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Kumar Rajiv Pratap
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जितनी बार भी पढ़ता हूं, ऐसा लगता है, कहीं एक बार फिर से पढ़ लूं,....... कहीं परशुराम हृषि की विवेचना तो कभी कर्ण की दानशीलता, ऐसा लगता है , कहीं कुछ छूट रहा हो.....कभी प्यास तृप्त नहीं होती........
Rashmirathi
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5y
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