बिनु सत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।
सठ सुधरहिं सत्संगति पाई। पारस परस कुघात सुहाई।।
अर्थ : सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और राम जी की कृपा के बिना वह सत्संग नहीं मिलता, सत्संगति आनंद और कल्याण की जड़ है। दुष्ट भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुंदर सोना बन जाता है।