शैलेश जी , नमस्कार। एक बार एक दिवंगत कवि की युवा पुत्री नें अपनें पिता जी की एक कविता आपके कार्यक्रम में सुनाई थी बेटियों पर। जिसमें शब्द ही शब्द थे... वाक्य नही..। जैसे.... गुड़िया, तितलियाँ, चूड़ियां, सिसकियाँ, टिक्ठियां...। एक लड़की के पैदाइश से लेकर मृत्यु तक के सारे भाव उस कविता में थे। मुझे वो कविता चाहिए... प्लीज..।