"उर्वशी" निश्चित रूप से प्रशंसनीय और पठनीय हैं ,इसलिए नहीं कि इसकी पृष्टभूमि पुरूस्कारों से भरी है बल्कि इसलिए कि इस रचना ने "विक्रमोर्वशीयम" के सुसंस्कृत-सत्य की आवश्यक जटिलता को हिंदी के सरल, किन्तु विशुद्ध स्पष्टीकरण में लुप्त नही होने दिया । जो पाठक आदतन गहन अध्ययन में विश्वास करते हैं , वे निस्संदेह इसे पढ़ते हुए "सौंदर्य से समाधि तक की यात्रा" का अनुभव करेंगे ।।
मेरा अबतक का लेखन उज्ज्वल होने के प्रयास में बहुधा दिनकर जी की ऐसी काव्य रश्मियों की सहायता ले चुका है ।