Randeep Hooda जी की फिल्म का ऐलान हुआ तब से मुझे इस फिल्म का इंतजार था और संयोग से मुझे महाराष्ट्र के पुणे शहर में यह फिल्म देखने का अवसर मिला । पुणे शहर सावरकर बंधुओं के जीवन संघर्ष में एक अहम स्थल है , विनायक सावरकर जी यहीं के फरग्युसन कॉलेज में पढ़ा करते थे जहां से उन्हें स्वदेशी आंदोलन से जुड़े प्रदर्शन करने हेतु रस्टिकेट किया गया था । सबसे छोटे सावरकर बंधु नारायण राव जी की आजाद भारत की प्रथम मॉब लिंचिंग में हत्या इसी पुणे शहर में हुई ।
फिल्म में दिग्दर्शन , चलचित्रनिर्माण कला(सिनेमेटोग्राफी) और अभिनय तीनों उच्च श्रेणी का है । रणदीप हुड्डा वैसे भी कभी निराश नहीं करते और इस फिल्म में भी उन्होंने सावरकर जी के जीवन का अभिनय पूर्ण समर्पण और दक्षता से किया है । फिल्म के दौरान अमित सियाल और रणदीप हुडा जब जब एक साथ स्क्रीन पर आते हैं तब एक अलग ही बंधु–प्रेम भाव महसूस होता है । सावरकर परिवार का संघर्ष , त्याग और बलिदान नमन करने योग्य है । आज होली का दिन था , तब भी 80–100 लोग सिनेमाघर में थे , कल रविवार को मैं जब ऑनलाइन बुकिंग देख रहा था तब लगभग सभी शो 90% आक्यूपेंसी पर बुक थे ।
अगर ऐसी फिल्म देख थोड़े भी लोगों को एक नया दृष्टिकोण मिलता है तो यह फिल्म सुपरहिट है । मुझे व्यग्तीगत फिल्म देख कर संतोष हुआ और भविष्य में सशस्त्र क्रांति और हिंदुत्व से जुड़ी और भी कहानियां सिनेमा का रूप लें तो खुशी की बात होगी ।