एक छोटे से गाँव का रहने वाला युवक, आँखों में कुछ सपने संजोये शहर की चकाचौंध से ऊबकर जब वापस अपने गाँव लौटता है तब उसके मन में जो भावनाओं का ज्वार उठता है, मेरे हिसाब से उसकी अभिव्यक्ति है "मेरे गाँव आओगे"
गाँव के बचपन को पनाह देते विशाल वृक्ष, खेत खलिहान, बचपन के शरारती दोस्त, जब कई वर्षों के पश्चात सामने दिखते हैं तो इनके सानिध्य में गुजरा समय आँखों के सामने घूमने लग जाता है.
राहगीर को भी अपने गाँव लौटने पर शुभकामनाएँ