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चित्र कूट गोदावरी इलाके में किसी जमाने में चुन्नी लाल पहलवान की धाक चलती थी।जिस समय लोग सायकिल से चलने के मोहताज थे वो मर्सरीज कार की सवारी करते थे।
उन्होंने दंगल और मल कंब जैसे खेलो में महारत हासिल की थी।पारिवारिक विवाद के चलते किसी ने उनकी मा के हाथ में डंडा मार दिया था और हाथ टूट गया।महज 17 साल की आयु में उन्होंने उस सक्स को खंभे में बांध के जिंदा जला दिया।वहीं से उनके बागी जीवन की शुरुआत हुई।उनका कच्चा मकान करीब 100 मीटर का हुआ करता था।जिस पर करीब 200 हथियार बंद लोग रहते थे।हनुमान जी के भक्त चुन्नीलाल पहलवान ददुआ ठोकिया बलखड़िया जैसे अनेक बागियों के साथ अपने सिक्के को कायम रखा था।
बीते कुछ साल में ढलती उम्र के कारण उन्होंने बागियों का जीवन त्याग दिया और गोदावरी के पास के ही गाव लाला पुर में अपना सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं।लोग बताते हैं उस इलाके में जायजात के वटवारे में पहली बांट हथियारों की ही होती थी।
मैं अपने स्वर्गीय पिता जी श्री रवीन्द्र प्रसाद शुक्ला भारतीय थल में 23 साल की सेवा निवृत्ति के आखों देखी बात बता रहा हूं।