श्री अडवाणीजी से जब पता चला कि ये फ़िल्म उन्होंने श्री अटल जी के साथ देखी थी जब वे एक byelection हार गए थे ,तो ये फ़िल्म मैन भी देखी शायद 50 के दशक की फ़िल्म होने की वजह से नही देखी थी अब तक। बहुत ही सकरात्मक एवं उम्दा फ़िल्म हैं ,इंसान एक उम्मीद के सहारे जीता हैं कि इस अंधियारे दुख भरे रात की फिर सुबह होगी। इस फ़िल्म से ये सीखने को मिला कि हमे कभी हिम्मत नही हारने चाहिए सच का साथ निभाना चाहिए। शायद अटलजी 35 या 40 वर्ष को होगे जब उन्होंने ये फिल्म देखी होगी। सन 1955-58 के उस दौर को बखूबी चित्रण किया गया हैं। लाजवाब !!!