#अजीब_दास्तान
आज की रात देखी ये फ़िल्म।
एक फ़िल्म में चार अलग-अलग फिल्में---
मजनूं
खिलौना
गीली पुच्ची
अनकही
सभी में मज़बूत महिला पात्र।
फ़ातिमा शेख, नुसरत बरूचा, कोंकणा सेन और शैफाली ने जान डाल दी फ़िल्म में।
पुरुष पात्रों मद यदि कोई उभर कर आया तो वह हैं #मानव_कॉल अच्छी एक्टिंग है उनकी।
फ़िल्म में पहली कहानी है मजनूं । कहानी में आगे क्या होगा पता व्हेल जाता है यहाँ तक कि अंत भी वही हुआ जो मैंने सोचा। ये थोड़ा कमज़ोर पक्ष कहा जाएगा।
खिलौना में छोटी बच्ची का अभिनय जानदार है। और कूकर वाला सीन तो रौंगटे खड़े कर देता है। निम्न मज़दूर वर्ग की दुश्वारियों को दिखाया है ।
अनकही में शैफाली और मानव की एक्टिंग भी जबर्दस्त है। खासकर लास्ट सीन में जब Manav Kaul शैफाली के घर के बाहर खड़े होकर साइन लेंग्वेज में बात करते हैं। उनके एक्सप्रेशन वाह!! 👍👍❤️
सबसे अच्छी लगी #गीली_पुच्ची
कोंकणा सेन का गज़ब अभिनय। दलित कर्मचारी के किरदार में जान डाल दी। कहानी और संवाद ज़बरदस्त।
एक सुझाव है -
मूक व बधिर पात्र हों तो उनके डायलॉग सब टाइटल्स के साथ-साथ रिकार्डेड बैकग्राउंड में चलने चाहिए। इससे दर्शक अच्छे से समझ पाते हैं और पात्र के इमोशन्स भी और खुलकर सामने आते हैं। सब टाइटल्स पढ़ते समय एक्सप्रेशन मिस हो जाते हैं कई बार ।
मेरी तरफ से 8/10 😊😊