The kerala story देख ली. फ़िल्म पर बहुत कुछ लिखा और कहा जा रहा है. उस सब के बाद इसे देखना ज़रूरी हो गया था.
फ़िल्म देखने से पहले लग रहा था फ़िल्म heavy होगी. देखने के बाद मन बेहद विचलित है. बहुत से प्रश्न मन में उठ रहे हैं.
एक बहुत बड़ा प्रश्न जो मेरे मन में अक्सर सर उठाता है वो ये है कि ऐसा क्यों है कि कोई-कोई अपने परिवार और जिस धर्म में पैदा हुआ हो उसे लेकर गर्व की भावना नहीं रख पाता? क्या उचित मार्ग दर्शन की कमी है या पश्चिम का अंधानुकरण?
इस प्रश्न का उठना मेरे लिए स्वाभाविक इसलिए है कि मुझे भी धर्म परिवर्तन का आग्रह किया गया था. मेरा जवाब था कि जिस धर्म में जन्म लिया है उसका कोई तो कारण होगा, उस कारण को जानने की जिज्ञासा उसी का अनुसरण करते हुए ही शांत हो सकेगी. यूँ भी धर्म का अर्थ मेरे निकट जीवन जीने की कला से है. अपने धर्म/पंथ में रह कर इसे बेहतर ढंग से समझा जा सकता है. आपके DNA में जो इबारत है वो आप स्वयं समझ सकते हैं, कोई दूसरा नहीं.
सवाल फ़िल्म का.. तो ये फ़िल्म ना तो समय काटने के लिए और ना ही मनोरंजन के लिए बल्कि एक जागरूक नागरिक होने के नाते अवश्य देखी जानी चाहिए. Heavy हैं. मन उदास हो जाता है. मगर जीवन में सब कुछ गुलाबी सुनहरा तो नहीं होता ना!