ये साला, लॉकडाउन में यही सूझा बनाने को इससे हजार गुना बढ़िया फिल्म *कंचना* है
किसी भी एक चीज पर फोकस नहीं कर पाए फिल्म बनाते टाइम।
ज्ञान चोदते दिख रहे हैं पूरे फिल्म में सब
जितने भी गाने हैं कोई फिल्म की स्टोरी से तनिक भी नहीं मिलते है ।
माता की चौकी का कोई मतलब नहीं फिल्म में सिर्फ मजाक उड़ाने को बना है
किन्नर समाज वाला भाषण देते टाइम भी ज्ञान झाड़ते दिख रहे हैं ।
बाबा का भूत भागने से मना करना और पीर बाबा का भूत भगाने को हां करना समझ नहीं आया ।
मंदिर में मार पीट के टाइम खंभे का टूटना दिखाना भी समझ नहीं आया ।
त्रिशूल से विलन को मरना भी समझ से परे है
कुल मिलाकर जितना ओवरएक्ट दिखाया गया है समाज में होता ही नहीं है चाहे पॉजिटिव हो या निगेटिव ।
ये फिल्म ठीक वैसे ही बनी है जैसे धारावाहिक बनते हैं, कपोल - कल्पित