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*बेदम पड़ा दुख*
सोच में डूबा आदमी
यह कहते हुए उठा...
दु:ख कितना ही क्यों न हो
उसमे डूब मरना ठीक नहीं
और चल पड़ा |
आदमी तो दूर निकल गया
दुख वहीं पड़ा है बेहाल|
……………………
*सन्तोषकुमार तिवारी*
रामनगर, नैनीलाल